मन्दिर,
वैसे तो मैं नही जाता !
पर पाण्डेय जी के साथ आज गया !
मन्दिर परिसर में,
प्रसाद मंदी से ११ रुपये का प्रसाद लिया गया।
पाण्डेय जी तो अंदर चले गए,
मै बाहेर ही रुका।
सभी तरह क लोग आते है हैं,वहां,
कुछ भ्रमित से,डिब्बे भर प्रस्साद लिए।
कुछ छिपाते हुए।
आ जा रहे थे।
लग रहा था जैसे,
कोई बड़े नेता जी के घर आए है,
पैरवी करवाने को,
बाहेर आकर,
वहाँ जो बुधे बच्चे थे,
लोग चुटकियों में भरकर लड्डू दान कर रहे थे।
आख़िर दानवीर कर्ण जो ठहरे!
दान सबको देंगे,
चाहे ऊंट के मुह में जीरा ही क्यों न हो!
......
कोई आध घंटे बाद के इंतज़ार के बाद,
पाण्डेय जी घंटा बजाते हुए बाहेर निकले।
हमने भी दो एक लड्डू खाए।
और चलने को हुए,
तभी एकदम से पाण्डेय जी ने,कहा
भाई! सोच रहे है,
एक दो भगवान् जी को लिए चले।
अरे! क्या कह रहे है!
मैंने अचरज से पुछा?
ये भी होता है??
खैर
हम भी चल दिए,
भगवान् जी की खरीददारी करने।
दुकान पर पहुँच,
कई भगवान् जी को उलटने पलने क बाद।
हनुमान जी पसंद आए।
पाण्डेय जी को।
अब बात थी मोल टोल करने की,
सो पाण्डेय जी ने हमारी तरफ़ देखा,
और हमने दूकानदार की तरफ़,
दुकानदार बोला भइया ४५ रूपया।
हमने ४० कहा।
बात नही पटी।
सो चल दिए।
दूसरी दुकान की तरफ़।
जैसे मंदी में आलू खरीदते हैं,
वैसा ही कुछ हो रहा था,
दूसरी दूकान पर बात बनी,
दो भगवान् जी को,
हाथों में लिए,
पाण्डेय जी लौट रहे थे,
प्रफुल्लित मन क साथ।
और मैं अपने विचारों में डूबा,
सोच रहा था,
उस बाज़ार के बारे में।
जहा भगवान् बिकते है!!
सर्व भक्तजनों से हमारा निवेदन है की,पढने क बाद हमें कहरी खोटी न सुनाये,जैसा की ब्लॉगर नाम से प्रतीत होता है,हम्मरे दिमाग में येही सब अंट-शंट खयालात आते है,वही बयान कर दियां। अगेर किसी क दिल पे ठेस पहुंचे,तो ये अंट-शंट छामाप्रर्थी है।
Saturday, August 1, 2009
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